Monday, July 7, 2008

भाग रहा हूँ

जबसे आया हूँ यहाँ
भाग रहा हूँ
कौन है आगे, पीछे कौन है पता नही'
मैं बस भाग रहा हूँ
निकलना है आगे
मन में हैं दृढ़ इच्छा
बनन है सिकंदर, लेकर सद् इच्छा
भाग रहा हूँ
हरियाली है यहाँ, हर तरह की हरियाली
लेकिन ठहराव नही है मेरे रस्ते मे
में भाग रहा हूँ
कभी कर्मो की खातिर, कभी कर्मो से
कभी अपनों की खातिर, कभी अपने आप से
मैं भाग रहा हूँ
सोचता हूँ, रुक जाऊ, ठहरू कुछ पहर
कर लू आराम, फिर भरु उड़ान
सोचता अभी, झकझोरता तभी
मेले सी महफिल में रह गया अकेला
...मैं भाग रहा हूँ
करना है साबित, बताना है जिगर है कितना
समझकर भी नही चाहते समझना जो
उनको समझाने को, जताने को
मैं भाग रहा हूँ
कुछ बदला है माहौल तब और अब में
बन्ने लगी है सख्सियत कुछ नजरों में उनकी
अब पहचान भी कुछ बना ली है
कभी कभी दूसरो से आगे भी निकलने लगा हूँ
लेकिन सच बताऊँ
अब डर सताने लगा है, चीन न ले कोई मेरी जगह
इसलिए भाग रहा हूँ
- रवि प्रकाश







2 comments:

शंकर शर्मा said...

Its really good to see you blogging. We all will cover it soon.

Anonymous said...

बहुत बढ़िया लिखते हैं आप ।

अभिनव सूद