Sunday, October 24, 2010
Friday, October 22, 2010
Wednesday, October 20, 2010
Friday, October 15, 2010
Wednesday, October 13, 2010
Saturday, September 4, 2010
Friday, November 13, 2009
मौसम विभाग कराएगा कृत्रिम बारिश
रवि प्रकाश तिवारी
आखिरकार भारतीय मौसम विभाग ने भी कृत्रिम बारिश (रेन मेकिंग) कराने का फैसला किया है। यह सीमित क्षेत्रों में अगले वर्ष प्रायोगिक तौर पर कराई जाएगी। इस बाबत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी, पुणे के मौसम वैज्ञानिकों ने पठानकोट से पुणे का सर्वेक्षण किया है ओर एरोसोल (कृत्रिम बारिश कराने के हालात) की संभावना तलाशी है। इस वर्ष के शोध के आधार पर अगले वर्ष मानसून के दिनों में महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में कृत्रिम बारिश कराई जाएगी।
भारतीय मौसम विभाग, नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. अजीत त्यागी ने वीरवार को यहां कहा कि इसका असर क्या होगा, इसके बारे में प्रयोग के बाद ही जानकारी मिलेगी।
इस प्रक्रिया के जरिए क्या देश मौसम संशोधन की ओर बढ़ रहा है, इसके जवाब में डॉ. त्यागी ने कहा कि अभी ऐसी कोई पहल नहीं होने जा रही है। हम vaigyanik पद्धतियों पर कृत्रिम बारिश की संभावनाओं को देखना चाहते हैं।
एेसे होती है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश (रेन मेकिंग) की खातिर क्लाउड सिडिंग की जरूरत होती है। मौसम विज्ञानी पहले बादल की पहचान करते हैं कि किसमें बरसने की क्षमता पैदा की जा सकती है। पहचान के बाद उस बादल पर सीडिंग मटेरियल (सिल्वर आयोडाइड, हाइड्रोस्कोपिक फ्लेम्स आदि) डालते हैं, जो बारिश कराता है। डॉ. त्यागी ने कहा कि फिलहाल तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में क्लाउड सीडिंग के लिए व्यावसायिक तौर पर अमेरिकी व अन्य बहुराष्ट्रीय कपनियों की मदद ली जा रही है।
रवि प्रकाश तिवारी
आखिरकार भारतीय मौसम विभाग ने भी कृत्रिम बारिश (रेन मेकिंग) कराने का फैसला किया है। यह सीमित क्षेत्रों में अगले वर्ष प्रायोगिक तौर पर कराई जाएगी। इस बाबत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी, पुणे के मौसम वैज्ञानिकों ने पठानकोट से पुणे का सर्वेक्षण किया है ओर एरोसोल (कृत्रिम बारिश कराने के हालात) की संभावना तलाशी है। इस वर्ष के शोध के आधार पर अगले वर्ष मानसून के दिनों में महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में कृत्रिम बारिश कराई जाएगी।
भारतीय मौसम विभाग, नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. अजीत त्यागी ने वीरवार को यहां कहा कि इसका असर क्या होगा, इसके बारे में प्रयोग के बाद ही जानकारी मिलेगी।
इस प्रक्रिया के जरिए क्या देश मौसम संशोधन की ओर बढ़ रहा है, इसके जवाब में डॉ. त्यागी ने कहा कि अभी ऐसी कोई पहल नहीं होने जा रही है। हम vaigyanik पद्धतियों पर कृत्रिम बारिश की संभावनाओं को देखना चाहते हैं।
एेसे होती है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश (रेन मेकिंग) की खातिर क्लाउड सिडिंग की जरूरत होती है। मौसम विज्ञानी पहले बादल की पहचान करते हैं कि किसमें बरसने की क्षमता पैदा की जा सकती है। पहचान के बाद उस बादल पर सीडिंग मटेरियल (सिल्वर आयोडाइड, हाइड्रोस्कोपिक फ्लेम्स आदि) डालते हैं, जो बारिश कराता है। डॉ. त्यागी ने कहा कि फिलहाल तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में क्लाउड सीडिंग के लिए व्यावसायिक तौर पर अमेरिकी व अन्य बहुराष्ट्रीय कपनियों की मदद ली जा रही है।
Subscribe to:
Posts (Atom)